सिंगरौली जिले में अखिल भारतीय ब्राह्मण एकता परिषद द्वारा मनाया गया भव्य रुप से भगवान परशुराम जन्मोत्सव

सिंगरौली जिले में अखिल भारतीय ब्राह्मण एकता परिषद द्वारा मनाया गया भव्य रुप से भगवान परशुराम जन्मोत्सव

सिंगरौली 3 मई हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी जिले में अक्षय तृतीया के शुभ अवसर पर भगवान परशुराम जी की जयंती बड़े ही धूमधाम व हर्षोल्लास के साथ मनायी गई। अखिल भारतीय ब्राह्मण एकता परिषद के सौजन्य से हर वर्ष परशुराम जयंती अलग-अलग स्थान मे मनाई जाती रही है इसी कड़ी में इस वर्ष भी भगवान परशुराम जयंती नवजीवन विहार सेक्टर एक स्थित शिव मंदिर प्रांगण में बड़े ही हर्षोल्लास से मनाई गई जिसमें जिले के तमाम ब्राह्मणों ने एकत्रित होकर भगवान परशुराम जी की पूजा, आरती व दीप प्रज्वलित कर मनाया। मुख्य अतिथि श्री रामनरेश पांडे(शास्त्री)जी ने भगवान परशुराम की जीवनी पर संक्षिप्त परिचय देते हुए कहा
भगवान परशुराम विष्णु जी के छठे अवतार है. लेकिन झूठे प्रचार रचकर परशुरामजी को केवल ब्राह्मणों के भगवान तक सीमित करने का कुत्सित प्रयास किया गया जबकि परशुराम सभी सनातनियों के समान रूप से भगवान है. सनातन को बांटने वाली शक्तियों ने पौराणिक कथाओं को तोड़ मरोड़कर ब्राह्मण और क्षत्रियों के मध्य द्वंद्व पैदा करने का घृणित कार्य किया जिसमें से एक है कि परशुराम ने धरती से 21 बार समस्त क्षत्रियों का समूल संहार किया था. जातियों में बंटे सनातन को इस एक पंक्ति से बांटना और भी सरल हो गया क्योंकि इसके पीछे के कथासार का अर्थ समझने और समझाने की कभी चेष्ठा नही की गई. सनातन में जातियां नही थी वर्ण था, यहां क्षत्रिय से अभिप्राय जन्म से क्षत्रिय नही था बल्कि उन राजाओं से था जिनका कर्तव्य क्षात्र धर्म था लेकिन वे विधर्मी बन गए. परशुरामजी ने ऐसे विधर्मियों का समय समय पर 21 बार संहार किया था ना कि समस्त क्षत्रिय कुल का. यह मूल मर्म समझना आवश्यक है. भगवान परशुराम के क्षत्रियों से मधुर सम्बन्ध रहे. त्रेतायुग मे जन्मे परशुरामजी के रघुवंश से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध रहे. महाराज दशरथ से लेकर जनक जी के साथ उनके आदरपूर्ण सम्बन्ध रहे. क्षत्राणी अम्बा के सम्मान हेतु ही परशुरामजी ने भीष्म से युद्ध किया. लेकिन सनातन विरोधियों ने ब्राह्मण क्षत्रिय वर्ण को आपस में बांटने के लिए अर्थ का अनर्थ कर झूठे दूस्प्रचार किये. श्री शास्त्री ने कहा कि परशुराम जी ब्राह्मण होकर भी क्षत्रिय अपनाया और ऋषि विश्वामित्र जी क्षत्रिय होते हुए भी ब्राह्मण धर्म को अपनाया। भगवान परशुराम जी समाज को संजोने का कार्य किया लेकिन कुछ तथाकथित विद्वानों ने परशुराम जी को क्षत्रिय विरोधी बताकर एक दूसरे को लड़ाने का प्रयास किया।
श्री शास्त्री ने परशुराम जी के बारे में बताते हुए कहा कि भगवान परशुराम अगर क्षत्रिय विरोधी होते तो भगवान राम कैसे अवतरित हुए होते ,माता सीता कैसे उत्पन्न हुई होती जबकि परशुराम जी को कुछ अनुयायियों ने परशुराम जी की क्षत्रिय विहीन प्रण को दर्शाया है।जबकि परशुराम जी शहश्रबाहु नामक क्षत्रिय के कुकर्मों से तंग आकर प्रण लिया था कि ऐसे क्षत्रिय से अच्छा धरती क्षत्रिय विहीन ही रहे।जबकि उसी सतयुग (कालखंड) मे राजा दशरथ व राजा जनक जी भी क्षत्रिय वर्ग से थे जिन्हें परशुराम जी अपना अनुयायी मानते थे।