एनटीपीसी सिंगरौली में समारोह के दूसरे दिन ‘किस्सा दुलारी बाई का’ भव्य मंचन
शक्तिनगर, समूहन कला संस्थान की दो नाट्य प्रस्तुतियो का समारोह एनटीपीसी सिंगरौली द्वारा हिन्दी पखवाड़़ा के अन्तर्गत आयोजित हुई, जिसके दूसरे दिन मणी मधुकर की रचना ‘‘किस्सा दुलारी बाई का’’ नाट्य प्रस्तुति का सफल मंचन निर्देशक रोज़ी मिश्रा के निर्देशन में हुआ। इस अवसर पर एनटीपीसी सिंगरौली के कार्यकारी निदेशक एवं परियोजना प्रमुख श्री संदीप नायक ने अपने संबोधन में समूहन कला संस्थान के नाटक को अत्यंत प्रभावशाली एवं प्रासंगिक बताया और कहा कि, “ईमानदारी और सत्यनिष्ठा को निरूपित करते इस नाटक का जनसमान्य पर अत्यंत गहरा प्रभाव पड़ेगा एवं आम जनमानस मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए प्रेरित होंगे”। परियोजना प्रमुख के साथ अध्यक्षा वनिता समाज श्रीमती प्रज्ञा नायक एवं गणमान्य अधिकारीगण श्री पीयूष श्रीवास्तव, महाप्रबंधक (रसायन), श्री सी एच किशोर कुमार, महाप्रबंधक (अनुरक्षण), श्री रश्मिरंजन मोहंती, महाप्रबंधक (परियोजना) ने नाटक का आनंद लिया। डाॅ0 ओमप्रकाश, उप महाप्रबंधक (मानव संसाधन- राजभाषा) ने कुशल संचालन करते हुए आगत अतिथियों के प्रति अभिनन्दन ज्ञापित किया।
‘किस्सा दुलारी बाई का’ एक व्यंग्यपूर्ण लोकनाट्य है, जिसकी कथा गाँव की अत्यधिक कंजूस और लालची स्त्री दुलारी बाई के इर्द-गिर्द घूमती है। दुलारी बाई के लिए धन और सोने की लालसा ही जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य है। इसी स्वभाव के कारण वह विवाह से भी दूर रहती है, क्योंकि विवाह के बाद उसकी संपत्ति पर पति का अधिकार हो जाएगा। कथा में कल्लू भांड नामक एक बहरूपिया का प्रवेश होता है। वह कभी साधु तो कभी राजा का रूप धरकर दुलारी बाई को छलावे में फँसाता है। साधु बनकर वह उसे समझाता है कि उसके जीवन की सारी कठिनाइयों और दुखों का कारण उसके पुराने जूते हैं। यदि वह उन जूतों से छुटकारा पा ले, तभी उसके जीवन में सुख और विवाह का मार्ग प्रशस्त होगा।
आखिरकार कथा में मोड़ तब आता है जब दुलारी बाई से कल्लू भांड राजा का वेष धर धोखे से विवाह कर लेता है तो दुलारी दुख से रोने लगती है। ईश्वर उसे रोता देख प्रकट हो एक वरदान माँगने का अवसर देते हैं। दुलारी वरदान माँग बैठती है कि वह जो कुछ भी छुए सोने का हो जाए। बस फिर क्या था सुखद लगने वाले यह वरदान शीघ्र ही अभिशाप मे बदल जाता है, भूख से व्याकुल जब वह कुछ भी खाने के लिए छूती है तो वह सोने का हो जाता है। यही वह क्षण है जब दुलारी को रिश्तों और जीवन की सच्ची महत्ता का बोध होता है। वह ईश्वर से वरदान वापस लेने का निवेदन करती है और इस स्वप्न भंग के माध्यम से उसे यह अहसास होता है कि धन और स्वर्ण से अधिक मूल्यवान रिश्ते, प्रेम और जीवन की सरलता है।
मंच पर अभिनय करने वाले कलाकारों में अक्षत कुमार ने कटोरीमल, राजन कुमार झा नें सूत्रधार और पटेल, श्रेयसी सिन्हा और मनी अवस्थी ने दुलारी बाई, अभिषेक विश्वकर्मा ने कल्लू भांड की भूमिका निभाई। प्रभात कुमार गंगाराम, आलोक कुमार गुप्ता सूत्रधार और चिमना मांझी, आकाश पाण्डेय ननकू ने भी प्रभावित किया। संगीत पक्ष में पवन पाठक ने हारमोनियम वादन, गौरव शर्मा ने रिदम वादन, वैभव बिन्दुसार ने कोरस गायन और रवि प्रकाश सिंह के कला पक्ष ने नाटक को गति प्रदान किया। वेषभूषा राजन कुमार झा, मंच सामग्री आलोक कुमार गुप्ता, आकाश पाण्डेय, रूपसज्जा मनी अवस्थी, श्रेयसी सिन्हा मंच प्रबंधन प्रभात कुमार, आकाश पाण्डेय एवं अन्य सभी कलाकार ने प्रस्तुति को सार्थक किया। संगीत निर्देशन कुमार अभिषेक, प्रकाश संयोजन मो0 हफीज़ ने नाटक को सार्थक परिवेश दिया।
अंततः नाटक हास्य और व्यंग के माध्यम से बहुत ही स्पष्ट संदेश देता है कि जब समाज मानवीय मूल्यों और वैचारिक दृष्टिकोण को छोड़कर दिखावे की प्रतिष्ठा और खोखले सम्मान के आवरण तले खुद को संकुचित कर लेता है तो वो अपने ही योग्य और सक्षम व्यक्तियों को खो देता है। वास्तविक प्रगति तभी संभव है जब समाज के हर स्तर और वर्ग के लोगों की मानवीय भावनाओं को समझा जाए। इस अवसर पर बड़ी संख्या में एनटीपीसी सिंगरौली के कर्मचारी और उनके परिवारजन, शिक्षक एवं सी आई एस एफ के प्रतिनिधि उपस्थित रहें और नाट्य प्रस्तुति की भूरि-भूरि प्रशंसा की।