बच्चों के कुपोषण को दूर करने का दावा हवा हवाई एनआरसी बैढऩ में एक पखवाड़े में केवल दो बच्चे ही हुए भर्ती.
महिला बाल विकास विभाग अमला है उदासीन, साल में लाखों खर्च, कुपोषित बच्चों की नहीं घट रही संख्या
बच्चों के कुपोषण को दूर करने के लाख दावे किये जा रहे हैं और कुपोषण के नाम पर साल में लाखों रूपये भी खर्च किया जा रहा है, लेकिन विभागीय अमले की हीला-हवाली के चलते बच्चों का कुपोषण केवल कागजों में ही दूर हो रहा है, लेकिन स्थिति कुछ और है। इसका जीता जागता उदाहरण पोषण पुनर्वास केन्द्र पुराना जिला चिकित्सालय बैढऩ का है। जहां एक पखवाड़े के दौरान केवल दो कुपोषित बच्चों को ही भर्ती कराया गया, उसमें से एक की छुट्टी दे दी गयी।
गौरतलब हो कि कुपोषण की इस स्थिति से निबटने के लिए पोषण पुर्नवास केंद्र एनआरसी स्थापित किये गए हैं। पोषण पुनर्वास केंद्र में बच्चे को 14 दिनों के लिए रखा जाता है। डाक्टर की सलाह के मुताबिक उनका खानपान का विशेष ख्याल रखा जाता है। यहां रखा गया कोई बच्चा 14 दिनों में कुपोषण से मुक्त नहीं हो पाता है तो वैसे बच्चों को एक माह तक यहां रख कर विशेष देखभाल की जाती है। भर्ती हुए बच्चे के वजन में न्यूनतम 15 प्रतिशत की वृद्धि के बाद ही यहाँ से डिस्चार्ज किया जाता है। पोषण पुर्नवास केंद्र में मिलने वाली सभी सुविधाएं नि:शुल्क होती हैं, किन्तु जिला मुख्यालय बैढऩ के एनआरसी का हाल बेहाल है। अपै्रल एवं मई महीने में कोरोना वायरस के इस संक्रमण को देखते हुए एनआरसी केन्द्रों को बंद करा दिया गया था, किन्तु जून महीने से केन्द्र को संचालित करने के निर्देश दिये गये। हैरानी की बात है कि कलेक्टर के निर्देश के बावजूद महिला एवं बाल विकास विभाग अमले की लापरवाही व उदासीनता के चलते जुलाई महीने में केवल दो बच्चे भर्ती हुए थे। जिसमें एक बच्चे को छुट्टी दे दी गयी। केन्द्र में केवल एक ही बच्चा भर्ती है। अब सवाल उठ रहा है कि क्या अब ऐसे में बच्चों का कुपोषण दूर होगा या फिर कागजों में ही बेहतर प्रगति बताकर महिला एवं बाल विकास अमला वाहवाही लेता रहेगा।
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चार महीने में केवल 18 बच्चे हुए भर्ती
जानकारी के मुताबिक एनआरसी बैढऩ में मार्च महीने से लेकर अब तक केवल 18 बच्चे ही भर्ती हुए हैं। यहां 20 बच्चों के लिए बेड आरक्षित है। मार्च महीने मेें 15, अपै्रल में 6, मई महीने में कोरोना संक्रमण को देखते हुए केन्द्र बंद था। वहीं जून में 6, जुलाई में दो बच्चों को भर्ती कराया गया है। बताया जा रहा है कि महिला एवं बाल विकास विभाग का अमला निक्रिष्य है। लिहाजा कुपोषित बच्चों को एनआरसी में भर्ती कराने में तत्परता नहीं दिखाई जा रही है।
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ये हैं पोषण पुर्नवास केंद्र में भर्ती के मानक
जानकारी के मुताबिक बच्चे को एनआरसी में भर्ती करने के लिए कुछ मानक निर्धारित हैं। इनमें बच्चों के विशेष जांच के तहत उनका वजन व बांह आदि का माप किया जाता है। 6 माह से अधिक एवं 59 माह तक के ऐसे बच्चे जिनकी बांई भुजा 11.5 सेमी हो और उम्र के हिसाब से लंबाई व वजन न बढ़ता हो वह कुपोषित है। उसे ही पोषण पुनर्वास केंद्र में भर्ती किया जाता है। इसके साथ ही दोनों पैरों में पिटिंग एडीमा हो तो ऐसे बच्चों को भी यहां पर भर्ती किया जाता है।
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कलेक्टर का निर्देश बेअसर
कोरोना वायरस कमजोर पडऩे के बाद कलेक्टर ने सभी महिला बाल विकास व मैदानी स्वास्थ्य अमले को निर्देशित किया था कि कुपोषित बच्चों को पोषण पुनर्वास केन्द्रों में भर्ती करायें। किन्तु कलेक्टर के इस आदेश को महिला एवं बाल विकास तथा स्वास्थ्य अमले के मैदानी कर्मियों ने नजरअंदाज कर दिया है। मैदानी सरकारी अमला कोरोना का बहाना बताकर अपनी जबावदेही से पल्ला झाडऩे का प्रयास कर रहा है। आईसीडीएस के कर्मचारियों का कहना है कि कुपोषित बच्चों के परिजन कोरोना वायरस के डर से एनआरसी में भेजने के लिए तैयार नहीं है।