वारसॉ, पोलैंड में भारतीय सामुदायिक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री के संबोधन का मूल पाठ
भारत माता की जय !
भारत माता की जय !
नमस्कार ! केम छो ! वणक्कम ! सत श्री अकाल ! जिन दोबरे !
ये नजारा वाकई अद्भुत है और आपका ये उत्साह भी अद्भुत है। मैंने जब से यहां पैर रखा है, आप थकते ही नहीं हैं। आप सभी पोलैंड के अलग-अलग हिस्सों से आए हैं, सबकी अलग-अलग भाषाएं हैं, बोलियां हैं, खान-पान हैं। लेकिन सब भारतीयता के भाव से जुड़े हुए हैं। आपने यहां इतना शानदार स्वागत किया है, मैं आप सभी का, पोलैंड की जनता का इस स्वागत के लिए बहुत आभारी हूं।
साथियों,
पिछले एक हफ्ते से, भारत के मीडिया में आप ही लोग छाए हुए हैं, पोलैंड के लोगों की खूब चर्चा हो रही है, और पोलैंड के विषय में भी बहुत कुछ बताया जा रहा है। और एक हेडलाइन और भी चल रही है, और मीडिया में बताया जा रहा है कि 45 साल बाद भारत का कोई प्रधानमंत्री पोलैंड आया है। बहुत सारे अच्छे काम मेरे नसीब में ही है। कुछ महीने ही पहले मैं ऑस्ट्रिया गया था। वहां भी चार दशक बाद भारत का कोई प्रधानमंत्री वहां पहुंचा था। ऐसे कई देश हैं, जहां दशकों तक भारत का कोई प्रधानमंत्री पहुंचा नहीं है। लेकिन अब परिस्थितियां दूसरी हैं। दशकों तक भारत की नीति थी कि सारे देशों से समान दूरी बनाए रखो। आज के भारत की नीति है, सारे देशों से समान रूप से नजदीकी बनाओ। आज का भारत सबसे जुड़ना चाहता है, आज का भारत सबके विकास की बात करता है, आज का भारत सबके साथ है, सबके हित की सोचता है। हमें गर्व है कि आज दुनिया, भारत को विश्वबंधु के रूप में सम्मान दे रही है। आपको भी यहां यही अनुभव आ रहा है ना, मेरी जानकारी सही है ना।
साथियों,
हमारे लिए ये geo-politics का नहीं है, बल्कि संस्कारों का, वैल्यूज़ का विषय है। जिनको कहीं जगह नहीं मिली, उनको भारत ने अपने दिल और अपनी ज़मीन, दोनों जगह स्थान दिया है। ये हमारी विरासत है, जिस पर हर भारतीय गर्व करता है। पोलैंड तो भारत के इस सनातन भाव का साक्षी रहा है। हमारे जाम साहब को आज भी पोलैंड में हर कोई, दोबरे यानि Good महाराजा के नाम से जानता है। वर्ल्ड वॉर-2 के दौरान, जब पोलैंड मुश्किलों से घिरा हुआ था, जब पोलैंड की हजारों महिलाएं और बच्चे शरण के लिए जगह-जगह भटकते थे, तब जामसाहब, दिग्विजय सिंह रंजीत सिंह जाडेजा जी आगे आए। उन्होंने पोलिश महिलाओं और बच्चों के लिए एक विशेष कैंप बनवाया था। जाम साहब ने कैंप के पोलिश बच्चों को कहा था, जैसे नवानगर के लोग मुझे बापू कहते हैं, वैसे ही मैं आपका भी बापू हूं।