ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना का पर्यावरणीय प्रभाव का मूल्यांकन
ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना जो रणनीतिक, रक्षा और राष्ट्रीय रूप से महत्त्वपूर्ण परियोजना है के विकास से जुड़े प्रस्ताव पर निर्णय कोरल रीफ और समुद्री प्रजातियों पर संभावित पर्यावरणीय प्रभावों पर उचित विचार करने के बाद लिया गया है। समय-समय पर संशोधित ईआईए अधिसूचना, 2006 के अनुसार, अधिसूचना, 2006 की अनुसूची में सूचीबद्ध सभी नई परियोजनाओं और/या गतिविधियों या मौजूदा परियोजनाओं या गतिविधियों के आधुनिकीकरण के लिए पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी जरूरी है। पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी की प्रक्रिया में स्क्रीनिंग, स्कोपिंग, सार्वजनिक परामर्श और मूल्यांकन जैसे विभिन्न चरणों में परियोजना की जांच शामिल है। ऐसी परियोजनाओं के लिए पर्यावरणीय मंजूरी देने के लिए पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (ईआईए) रिपोर्ट के साथ पर्यावरण प्रबंधन योजना (ईएमपी) भी देना जरूरी है।
कई अध्ययन किए गए और उनके परिणामस्वरूप शीर्ष वैधानिक और गैर-वैधानिक निकायों द्वारा शमन उपाय किए गए। जैसे कि भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (“जेडएसआई”), सलीम अली पक्षीविज्ञान और प्राकृतिक इतिहास केंद्र (“एसएसीओएन”), भारतीय वन्यजीव संस्थान (“डब्ल्यूआईआई”), भारतीय विज्ञान संस्थान (“आईआईएससी”) मूल्यांकन प्रक्रिया के दौरान आईआईटी, एनआइओटी, एनसीसीआर, एनआईओ आदि जैसे विशेष कौशल वाले स्वतंत्र संगठन भी शामिल थे। जेडएसआई द्वारा किए गए मूल्यांकन ने संकेत दिया कि परियोजना को अपेक्षित पर्यावरणीय सुरक्षा और उचित संरक्षण उपायों के साथ लागू किया जा सकता है।
परियोजना के मूल्यांकन के दौरान विज्ञान और इंजीनियरिंग विशेषज्ञों वाली एक स्वतंत्र विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (ईएसी) द्वारा ईआईए/ईएमपी रिपोर्ट की विस्तृत जांच की गई। प्रदान की गई पर्यावरणीय मंजूरी में परियोजना के प्रत्येक घटक से संबंधित 42 विशिष्ट शर्तें शामिल हैं, इसके अलावा वैधानिक अनुपालन, वायु गुणवत्ता निगरानी और संरक्षण, जल गुणवत्ता निगरानी और संरक्षण, शोर निगरानी और संरक्षण, ऊर्जा संरक्षण उपाय, अपशिष्ट प्रबंधन, हरित पट्टी, समुद्री पारिस्थितिकी, परिवहन, मानव स्वास्थ्य पर्यावरण और जोखिम शमन और आपदा प्रबंधन से संबंधित प्रत्येक घटक पर लागू सभी मानक शर्तें भी शामिल हैं।
इसके अलावा, पर्यावरण प्रबंधन योजना के कार्यान्वयन की देखरेख के लिए तीन स्वतंत्र निगरानी समितियों का भी पर्यावरणीय मंजूरी पत्र में प्रावधान किया गया है, अर्थात् (i) प्रदूषण संबंधी मामलों की देखरेख के लिए समिति (ii) जैव विविधता संबंधी मामलों की देखरेख के लिए समिति (iii) शोम्पेन और निकोबारी लोगों के कल्याण और उनसे संबंधित मुद्दों की देखरेख के लिए समिति।
यह जानकारी पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री श्री कीर्ति वर्धन सिंह ने आज राज्य सभा में एक लिखित उत्तर में दी।