राज्य सभा के 265वें सत्र में सभापति के उद्घाटन भाषण का मूल पाठ
राज्य सभा का यह 265वां सत्र, छह दशक से अधिक समय के बाद, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में लगातार तीसरे कार्यकाल के लिए निर्वाचित सरकार द्वारा प्रस्तुत प्रथम बजट पर चर्चा की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण सत्र है।
माननीय सदस्यों, मुझे विश्वास है कि यह प्रतिष्ठित सदन, वाद-विवाद में संयम बरतते हुए, पक्षपातपूर्ण हितों से ऊपर उठकर राष्ट्र की सेवा करने का संकल्प लेते हुए और राजनीति का मार्ग प्रशस्त करते हुए राष्ट्र का नेतृत्व करेगा।
निस्संदेह, हमारी राजनीति के तापमान को कम करने की आवश्यकता है। इस सदन को संसदीय परंपराओं, संसद की पवित्रता और औचित्य के उच्चतम मानकों को प्रतिबिंबित करना चाहिए, जो इस सबसे बड़े लोकतंत्र के विधानमंडलों और अन्य देशों के लिए भी प्रेरणादायी होंगे। विश्व हमारी ओर देख रहा है; आइए हम उसकी अपेक्षा पर खरा उतरें।
माननीय सदस्यों, मुझे पूरी उम्मीद है कि सदन की कार्यवाही समृद्ध और जानकारीपूर्ण चर्चा से परिपूर्ण होगी और इसके अधिकतम समय का उपयोग राष्ट्र के लाभ के लिए किया जाएगा।
आइए हम ‘संवाद, चर्चा, विचार-विमर्श और बहस’ के सिद्धांत को कायम रखें, मजबूत संसदीय संवाद के लिए अनुकूल माहौल तैयार करें और राष्ट्र के सामने एक उदाहरण पेश करें।
माननीय सदस्यगण, मैं आपका ध्यान एक अन्य महत्वपूर्ण और चिंताजनक पहलू की ओर आकर्षित करना चाहता हूं- कई बार, सदस्यों द्वारा सभापति को लिखे गए संदेश सार्वजनिक डोमेन में पहुंच जाते हैं और कभी-कभी तो संदेश पाने वाले तक पहुंचने से पहले ही यह हो जाता है। जनता का ध्यान आकर्षित करने वाली इस अनुचित प्रथा से बचा जाना चाहिए।
माननीय सदस्यगण, भारत से परे ऐसा कुछ भी नहीं है जो हम हासिल नहीं कर सकते। आइए हम हमेशा राष्ट्र को सर्वोपरि रखने के लिए समर्पित रहें और पक्षपातपूर्ण हितों को दरकिनार करें। इसकी शुरुआत के लिए लोकतंत्र के इस मंदिर से बेहतर कोई स्थान नहीं है। आइए हम सभी जन कल्याण के लिए एकजुट होकर कार्य करने की प्रतिबद्धता व्यक्त करें।