फूलों का अपशिष्ट सर्कुलर इकोनॉमी को बढ़ावा दे रहा है
मंदिरों में खाद बनाने के गड्ढे बनाने और मंदिर ट्रस्टों तथा स्वयं सहायता समूहों को पुनर्चक्रण के काम में शामिल करने से रोजगार के महत्वपूर्ण अवसर पैदा हो सकते है
पुजारियों और भक्तों को नदियों में फूलों का अपशिष्ट न डालने को लेकर उन्हें शिक्षित करने के लिए चलाये जा रहे आउटरीच कार्यक्रम से कचरे में कमी लाने में मदद मिल रही ह
जैसे-जैसे भारत स्थिरता और सर्कुलर इकोनॉमी की ओर बढ़ रहा है, अपशिष्ट से संपदा बनाने पर ध्यान केंद्रित करना ही रास्ता है। मंदिरों में खाद बनाने के गड्ढे बनाने और पुनर्चक्रण प्रयासों में मंदिर ट्रस्टों तथा स्वयं सहायता समूहों को शामिल करने से रोजगार के महत्वपूर्ण अवसर पैदा हो सकते हैं। पुजारियों और भक्तों को नदियों में फूलों का कचरा न डालने को लेकर उन्हें शिक्षित करने के लिए आउटरीच कार्यक्रम से कचरे में कमी लाने में मदद मिल सकती है। “हरित मंदिर” अवधारणा को मंदिरों को पर्यावरण के अनुकूल स्थानों में बदलने की नीतियों में एकीकृत किया जा सकता है। पारंपरिक फूलों के बजाय डिजिटल प्रसाद या स्वाभाविक तरीके से सड़नशील सामग्रियों को बढ़ावा देने से भी फूलों के कचरे को कम करने में मदद मिल सकती है। राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड को पार्कों आदि जैसे हरे भरे स्थानों में फूलों के कचरे का पता लगाने और उसे प्रबंधित करने में शामिल किया जा सकता है।