जयपुर में ‘स्नेह मिलन समारोह’ में उपराष्ट्रपति के संबोधन का पाठ (अंश)
महामहिम राज्यपाल राजस्थान, श्री हरिभाऊ बागडे जी, छह बार विधायक रहे, विधानसभा के अध्यक्ष रहे, राज्य में मंत्री रहे। इन्होंने जो बात कही, बहुत सटीक है। राज्यपाल जब प्रांत में होता है तो easy punching bag है। राज्य की सरकार यदि केंद्र की सरकार के अनुरूप नहीं है, तो आरोप लगना बहुत आसान हो जाता है। पर समय के साथ बदलाव आया, और उपराष्ट्रपति भी इसमें जुड़ गया, और राष्ट्रपति जी को भी इस दायरे में ले लिया गया। यह चिंतन, चिंता और दर्शन का विषय है। ऐसा मेरी दृष्टि में होना उचित नहीं है।
मेरा परीक्षण चिकित्सा परीक्षण रोज़ाना होता है, और मैं कह सकता हूँ कि मेरे पर कोई दबाव नहीं है। ना मैं किसी पर दबाव डालता हूँ, ना ही दबाव में आता हूँ। राजस्थान की भूमि पर यह इसलिए कह रहा हूँ कि मेरे अभिन्न मित्र, लंबे समय के मित्र का यह बयान है, और मैंने खुद देखा है नजदीकी से।
लोकसभा अध्यक्ष, ओम बिरला जी, दबाव में आ ही नहीं सकते, मैं उनके साथ मिलकर काम करता हूँ। दूसरा जो महत्वपूर्ण पहलू है — राजस्थान का पानी पीने वाला व्यक्ति दबाव में आ ही कैसे सकता है। वह तो गर्मियों में परिश्रम करता है। आपके यहाँ के अध्यक्ष, श्री वासुदेव देवनानी जी — मेरा परम सौभाग्य रहा है कि राजस्थान के जो अध्यक्ष अब तक रहे हैं 14, किसी न किसी रूप में मेरा उनसे लगाव रहा है। आपके पहले जो अध्यक्ष रहे हैं
प्रतिपक्ष का बहुत बड़ा योगदान रहता है। प्रतिपक्ष, विरोधी पक्ष नहीं है। प्रजातंत्र में आवश्यकता है, अभिव्यक्ति हो, वाद-विवाद हो, संवाद हो। वैदिक तरीके से, जिसे ‘आनंंतवाद’ कहते हैं। अभिव्यक्ति बहुत महत्वपूर्ण है, प्रजातंत्र की जान है पर जब अभिव्यक्ति कुंठित होती है, या उस पर कोई प्रभाव डाला जाता है, या अभिव्यक्ति इस स्तर पर पहुँच जाती है कि दूसरे के मत का कोई मतलब नहीं है तो अभिव्यक्ति अपना अस्तित्व खो देती है। अभिव्यक्ति को सार्थक करने के लिए वाद-विवाद जरुरी है। और वाद-विवाद का मतलब है की जो लोग आपके विचार से एक मत नहीं रखते प्रबल संभावना है कि उनका मत सही है। किसी दूसरे का मत सुनना, आपकी अभिव्यक्ति को ताक़त देता है। आज के समय में इस ओर टीकाराम जूली ने अपना ध्यान आकर्षण किया, मुझे बहुत अच्छा लगा।
हरि मोहन जी से बहुत पुराना परिचय है। ‘राजस्थान प्रगतिशील मंच’ — नाम भी आपने अच्छा रखा है। पर एक इनकी खासियता है, और खासियता है Ever smiling face, captivating face.
भाई जीत राम को सब कुछ पता है, अंदर की बात पता है कि मेरा राजनीति में प्रवेश कैसे हुआ, मैं मंत्री कैसे बना, इनकी प्रमुख भूमिका रही है। मैं आभारी हूँ।
हर व्यक्ति यहाँ उपस्थित है, कुछ मेरे समकक्ष हैं, और अधिकांश मेरे से वरिष्ठ हैं। विधायक की दृष्टि से देखें तो हर हालत में मेरे से वरिष्ठ हैं। सबका नाम लेना संभव नहीं है, पर पदानुसार कुछ की ओर संकेत करना बहुत जरुरी है। सदन के नेता और प्रतिपक्ष के नेता इनका हमारी व्यवस्था में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। और यहाँ लंबे अरसे तक लगातार विधायक रहे — श्री राजेन्द्र राठौड़, पूर्व नेता प्रतिपक्ष।
राजस्थान का सौभाग्य है, क्योंकि मैं बात हरिभाऊ बागडे जी के, प्रांत की कर रहा हूं। आज से करीब 26 साल पहले, और पहली बार देश में और संसदीय प्रणाली में एक समिति का गठन किया गया — आचार समिति — और उसकी अध्यक्षता की दो बार के मुख्यमंत्री, देश के गृह मंत्री रहे, देश के रक्षा मंत्री रहे एस. बी. चौहान साहब ने। वो राज्यसभा के सदस्य थे। यह शुरुआत राज्यसभा से हुई। उन्होंने आचार समिति के अध्यक्ष के रूप में बहुत ही ज़बरदस्त रिपोर्ट दी। जो यहाँ पर कहा गया है कि मान रखा जाए, हमारा सम्मान हो, इन सब बातों को देखा गया था उस समय।
आज के समय यह दायित्व राजस्थान के 6 बार विधायक रहे श्री घनश्याम तिवाड़ी जी को मिला है। देश में जाएँगे, दुनिया में जाएँगे। आचार समिति के अध्यक्ष के रूप में गहन अध्ययन करेंगे क्योंकि बहुत आवश्यक है जनप्रतिनिधि की प्रतिष्ठा कायम रहना। वो खुद भी अपने आचरण से प्रतिष्ठा बनाए रखें, और यह भी देखें कि मेरा सम्मान भी हो, पद हटने के बाद भी सम्मान हो क्योंकि जिस कार्य में आप लगे हुए हैं, उसके लिए यह आवश्यक नहीं कि आप हर बार विधायक ही बनें। पूर्व विधायक के रूप में भी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। और हमारे वेदांत शास्त्रों में जो कहा गया है — giving back to the society, समाज को लौटाने का कृत्य करना — तो माननीय घनश्याम तिवाड़ी जी की उपस्थिति को मैं recognize करता हूँ।
मैं यहाँ पर अतिथि बिल्कुल नहीं हूँ, पर मुझे दो महापुरुषों की बात याद आ रही है। माननीय हरिदेव जोशी जी, वे अक्सर कहते थे — ‘राजनीति, प्रेम से करने की नीति है। राजनीति में आक्रोश किस बात का’ वह शब्द प्रयोग करते ‘बंधु, आक्रोश में क्यों हो?’ और ऐसा उन्होंने मुझे भी कहा। मेरा परम सौभाग्य था कि मैं उस समय विधायक था। बहुत ही सटीक बात उन्होंने कही। और इसी में यदि अगर कोई जोड़ूं, तो माननीय श्री भैरों सिंह शेखावत जी, ढूंढ लो, दुनिया की तकनीकि का उपयोग कर लो, उनका कोई दुश्मन नहीं मिलेगा। उन्होंने कभी मनभेद नहीं किया। और मतभेद, प्रजातंत्र का अभिन्न अंग है। यह हमें स्वीकार करना पड़ेगा।
ऐसी परिस्थिति में, जो आज के दिन राजनीति का वातावरण है और जो तापमान है वह स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है। प्रजातंत्र के स्वास्थ्य के लिए चिंता का विषय है, चिंतन का विषय है और यह हमारी हजारों साल की संस्कृति से मेल भी नहीं खाता है। राजनीति में आप अलग-अलग दल के हो सकते हैं, और इसमें भी बदलाव होता रहता है और काफी बदलाव होता है और सत्ता पक्ष प्रतिपक्ष में जाता रहता है, प्रतिपक्ष सत्ता पक्ष में आता रहता है। पर इसका मतलब यह नहीं है कि दुश्मनी हो जाए, दरार हो जाए। दुश्मन हमारे सीमापार हो सकते हैं, देश में हमारा कोई दुश्मन नहीं हो सकता।
यदि कहूँ lighter way में, तो पर्यावरण की चिंता को भी यह काफी हद तक खत्म करेगा। राजनीति का इतना तापमान असहनीय हो रहा है। बेलगाम होकर हम वक्तव्य जारी कर देते हैं। आज के दिन देखना पड़ेगा भारत का मतलब, दुनिया की एक-छठी आबादी यहाँ रहती है। दुनिया का कोई देश हमारे नज़दीक तक नहीं आता है। 5000 साल की संस्कृति किसके पास है? बेजोड़ है, बेमिसाल है।
हमारे पूर्वज कौन थे, हमारे ज्ञान का खजाना कितना ज़बरदस्त है। वेद देखिए, पुराण देखिए, हमारी epic देखिए — रामायण, महाभारत, गीता का संदेश देखिए। ऐसी परिस्थिति में मेरा सभी से आग्रह रहेगा कि विधान मंडलों को सर्वोच्च आचरण करना पड़ेगा और हमारे पास तो इसकी मिसाल है। संविधान सभा ने करीब तीन साल तक, 2 साल, 11 महीने, 18 दिन तक बड़े परिश्रम के साथ हमें संविधान दिया। पर उनके सामने क्लिष्ट समस्याएँ थीं, विभाजित करने वाली समस्याएँ थीं, गहरी समस्याएँ थीं। एकमत होना मुश्किल था, पर उन्होंने कभी टकराव नहीं किया वहाँ, कभी disturbance और disruption नहीं हुआ।
वाद-विवाद से, मेल-मिलाप से, they negotiated through the passage of consensualism, confrontation was never in their mind. आज का परिदृश्य जब देखते हैं तो मन परेशान हो जाता है, बड़ी चिंता होती है। चिंता इसलिए नहीं होती कि प्रजातांत्रिक मंदिर में इस प्रकार का कृत्य हो रहा है, चिंता इस बात की है कि यदि अगर यह प्रजातांत्रिक मंदिर में रहा, तो उस मंदिर के अंदर कोई पूजा करने नहीं आएगा, लोग दूसरी पूजा का स्थान देखेंगे। और यह प्रजातांत्रिक व्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती है। इस कसौटी पर खरे हम तभी उतर सकते हैं, जब सार्वजनिक दिमाग में यह बात लाई जाए और आज के दिन पूर्व विधायकों का इसमें बहुत महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है।
कैसे यह संभव है कि जो वाद-विवाद का स्तर होना चाहिए, वह मुश्किल है कहना भी ठिक इसके विपरीत हो रहा है। यह बहुत बड़ी चिंता का विषय है। मैं समझता हूँ कि हम इस ओर ध्यान देंगे।
राजस्थान की भूमि की पहचान — महाराणा प्रताप, महाराजा सूरजमल। उनकी हाल में याद आ गई — हाल में जो प्रतिघात हुआ, दुश्मनों के आतंकी ठिकानों पर कुठाराघात हुआ। बहावलपुर और मुरीदके में जो सटीक आक्रमण किया गया, कब्रिस्तान में जो ले जाए गए उनके सामने, उनके साथ सेना के लोग, आतंकी और सरकार खड़ी थी। यह बहुत सटीक था। एक बहुत बड़ा सबक सिखाया गया कि आतंकवाद को किसी भी परिस्थिति में बर्दाश्त नहीं करेंगे। और घोषणा की गई कि इस मुहिम का अंत नहीं है, यह निरंतर जारी रहेगा, जब तक कि अंत नहीं हो जाए आतंकवाद का। दुनिया के सामने एक बहुत बड़ी मिसाल रखी गई कि अंतरराष्ट्रीय सीमा के अंदर, प्रमुख प्रांत में, तकनीक का उपयोग करते हुए, हमारी ब्रह्मोस ने वह कृत्य किया कि आतंकी ठिकानों को ध्वस्त किया। और कितना ध्यान दिया गया कि और किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिए।
और ऐसी स्थिति में, भारत की कूटनीति की सफलता के प्रतीक — चाणक्य याद आ गए। चाणक्य ने कहा था युद्ध किसी के लिए ठीक नहीं है। भारत के प्रधानमंत्री ने 3 साल पहले कहा था हम ऐसे समय में नहीं रह रहे हैं, जहाँ युद्ध के माध्यम से कोई मामला सुलझाया जा सके। कूटनीति और विचार-विमर्श ही एक रास्ता है, जब हम समस्याओं का हल देख सकते हैं।
थोड़ा सोचो, यदि अगर सटीक रूप से चाणक्य नीति का पालन नहीं किया होता, तो आज हम जो देख रहे हैं तांडव नृत्य, इज़राइल-हमास और ईरान, यूक्रेन और रूस। कितनी भारी स्थिति हो रही है! मानव को कितनी चोट मिल रही है, दुनिया को कितना पीड़ित होना पड़ा है अर्थव्यवस्था में। पर यह गांधी का देश है। मैं समझता हूँ कि जब चिंतन करेंगे, अंदर से सोचेंगे तो जो कार्य राष्ट्रीय नेतृत्व ने किया है, वह जबरदस्त किया है। और देश में लंबे समय बाद इसकी शुरुआत की थी नरसिंहा राव जी ने। नरसिंहा राव जी ने एक बहुत महत्वपूर्ण मुद्दे पर श्रीमान अटल बिहारी वाजपेयी जी को भेजा। माननीय अटल जी तब प्रतिपक्ष में थे, क्योंकि जब हम देश के बाहर जाते हैं तो न पक्ष होता है, न प्रतिपक्ष हमारे सामने भारतवर्ष होता है।
यह अब दिखा दिया गया। दलगत राजनीति से ऊपर उठकर, दुनिया के अनेक कोनों में संसद सदस्यों का जाना, पूर्व राजनयिकों का जाना एक बहुत बड़ा कदम है। यह कदम है कि हमारे लिए राष्ट्र सर्वोपरि है, राष्ट्रहित हमारा धर्म है, भारतीयता हमारी पहचान है, जहां भारत का मुद्दा उठेगा हम विभाजित नहीं हैं। हमारे राजनीतिक मनभेद नहीं हैं हमारे राजनीतिक मतभेद हैं पर वो देश के अंदर हैं। और एक बहुत बड़ा संकेत और दिया गया कि जब देश की बात आती है तो राजनीतिक चश्मे से कुछ नहीं देखा जाएगा यह बहुत बड़ी उपलब्धि है जिसको हर आदमी को पता लगना चाहिए।
कई बार हम आवेश में आकर प्रश्न उठा देते हैं जब चोट मुझे नहीं लगेगी तो मैं कहूँगा लड़ते रहो, लड़ाई जारी रखो। यह अखबार में पढ़ने की बातें नहीं हैं। बड़ा कष्ट होता है, अर्थव्यवस्था पर गहरी चोट लगती है और ऐसा क्यों? क्योंकि जो भारत आज से 11 साल पहले कहाँ था? यह राजनीतिक विषय नहीं है, हर कालखंड में देश का विकास हुआ है। हर कालखंड में महारथ हासिल किया गया है, 50 के दशक में, 60 के दशक में, 70 के दशक में, बड़े-बड़े काम हुए हैं। पर जब इस कालखंड की बात करते हैं तो इसका अर्थ कदापि नहीं निकाला जाए कि किसी और कालखंड से तुलना कर रहे हैं। मैं दुनिया से तुलना कर रहा हूँ और दुनिया से इसलिए कर रहा हूँ कि जो भारत पहले दुनिया की 5 fragile economy में एक था आज वह दुनिया की चार बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में एक है।
हमने किन-किन को पीछे छोड़ा है, देखिए कुछ ही समय इंतजार कीजिए, जापान, जर्मनी, यूके, कनाडा, ब्राज़ील सब हमसे पीछे हैं। ऐसी छलांग लगी है कि गत दशक को दुनिया क्या कहती है, दुनिया कहती है कि पिछला दशक अर्थव्यवस्था के हिसाब से उसकी प्रगति के हिसाब से भारत ने जो प्रगति की है वह किसी और बड़े देश ने नहीं की है। पिछले 10 साल में, दुनिया में सबसे तीव्र गति से बढ़ता कोई राष्ट्र है, तो वह भारत है। और ऐसा क्यों कहा जाता है? क्योंकि आर्थिक उत्थान की छलांग जबरदस्त है। संस्थागत ढांचे में ऐतिहासिक बदलाव आए हैं। आप सब देखते हैं — रोड हो, रेलवे हो, हवाई जहाज़ हो, समुद्र हो, खनन हो, व्यापार हो, तकनीकी हो, साइंस हो, सब में क्या प्रगति हो रही है। समुद्र के नीचे, समुद्र की सतह पर, ज़मीन के नीचे, ज़मीन की सतह पर, आसमान में और अंतरिक्ष में, भारत ने धूम मचाई है। यह बड़ी छलांग है।
तकनीक देखिए, हर जगह पहुँच गई है। सोचा था कि 4G, 5G हर गाँव में होगी। यह हो गई है। इसीलिए, सबसे बड़ा उत्तरदायित्व हमारे ऊपर है और हमारे ऊपर उत्तरदायित्व इस बात का है।
मैं किसी भी परिस्थिति में इस बात को नहीं मानता कि पूर्व विधायक का मतलब वनवास है, संन्यास है, ऐसा नहीं है। मैं पूर्व विधायक हूँ, महामहिम, आप भी पूर्व विधायक हैं, और बाकी लोग भी पूर्व विधायक हैं। समाज को वापस देने की जो प्रवृत्ति है, उसके आप माध्यम बने। और किसी भी व्यवस्था में आपको सशक्त करना जनता के लिए सार्थक है, क्योंकि आपका जो अनुभव है, वह हर हालत में एक बेहतर ही स्थिति पैदा करने की क्षमता रखता है। किसान की थोड़ी बात करूंगा, गाँव की बात करूंगा।
विकसित भारत अब सपना नहीं है, हमारा लक्ष्य है और यह लक्ष्य निश्चित रूप से मिलेगा, 2047 या इससे पहले। भारत आज के दिन संभावनाओं वाला देश नहीं है, भारत में आकांक्षा लोगों की पराकाष्ठा पर है। उनकी उम्मीदें जागृत हो गई हैं। हम में से बहुत से लोग जो मेरी उम्र के हैं, याद करो वो दिन, घर में बिजली नहीं थी, घर में टॉयलेट नहीं था, घर में गैस कनेक्शन नहीं था, घर के अंदर नल में पानी की बात सोच ही नहीं सकते थे। इंटरनेट और टेलीविजन तो कल्पना से भी दूर थे। सड़क के लिए भी कई कोसों चलना पड़ता था। स्वास्थ्य केंद्र नज़दीक नहीं होता था। हम कहाँ से कहाँ पहुँच गए।
इसीलिए हर भारतीय को यह मज़बूती से करना पड़ेगा कि हम वस्तुस्थिति को समझें और इसके लिए पूर्व विधायकों का बहुत बड़ा रोल है। मेरा आपसे अनुरोध रहेगा कि गाँव और किसान जब तक आगे नहीं बढ़ेगा, तब तक हम दुनिया के सिरमौर नहीं हो सकते। गाँव तैयार है, किसान तैयार है पर किसान यदि अगर कृषि उत्पाद करने तक सीमित रहेगा तो यह संभव नहीं है। किसान को Agro-Marketing में आना पड़ेगा। यह देश का बहुत बड़ा व्यापार है। जिसे कहते हैं value addition in agro-produce, किसान को उसमें भागीदारी करनी पड़ेगी। विकसित भारत का रास्ता गाँव से निकलता है। देश की समृद्धि का जो मूल मंत्र है, वो ग्रामीण विकास है। और इसीलिए मैं कई बार कहता हूँ कि जो हमने देखा है, हमारी संस्कृति में वो दुर्लभ हो गया है आज के दिन — शुद्ध जल, शुद्ध हवा, शुद्ध आहार। हमें यह करना पड़ेगा।
किसान की अर्थव्यवस्था बहुत लंबी छलाँग लगाएगी पर उसमें पूर्व विधायकों को भी अपना योगदान देना पड़ेगा। मेरी दृष्टि में you are the most powerful think tank to advise the government. क्या policies हों? प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि 6000 रुपये मिलते हैं, बड़ी शुरुआत है, साल में करीब 60,000 करोड़ रूपए किसान के पास जाते हैं। 10 करोड़ किसान परिवार हैं पर सरकार जो किसान को सब्सिडी दे रही है fertilizer के अंदर और अनेक और मामलो में भी वह पूरी की पूरी किसान के पास सीधी पहुंचे तो हर किसान परिवार को हर साल इस सब्सिडी के एवज में 30,000 रुपए से ज्यादा मिल सकता है। इसका आप लोगों को अध्ययन करना चाहिए।
आप हैं जो बता सकते हैं कि करीब 3 लाख करोड़ का खर्चा सरकार कर रही है, fertilizer सब्सिडी में। वह सीधी किसान को दी जाए तो नेचुरल फ़ार्मिंग, ऑर्गैनिक फ़ार्मिंग, यह निर्णय किसान करेगा। chemicals और pesticides से हम बचेंगे, नया तरीका निकलेगा। इसकी ओर हमारी सोच जानी चाहिए। मेरे समूह ने एक अध्ययन किया कि अमेरिका में जितनी मदद किसान को मिलती है वह पूरी की पूरी मदद किसान को मिलती है। बीच में कोई बिचौलिया नहीं है, किसी सरकारी तंत्र के माध्यम से नहीं मिलती है। निर्णय किसान करता हैं। उसे कौनसी खाद खरीदनी है या मुझे पशुधन खरीदना है ताकि खाद का भी उपयोग करूं और बाकी भी फायदे हों। नतीजा क्या है? अमेरिका में जो आम घर है उसकी जो औसत सालाना आय है। वह किसान की परिवार की औसत आय से कम है, किसान परिवार की ज्यादा है। इस पर आप अंदाज़ा लगा सकते हो कि क्या किसान को लग रहा है कि सरकार उस पर इतना ख़र्चा कर रही है? नहीं है तो विकल्प सुझाये, सीधा मिलने का करें तो यह बहुत अच्छा रहेगा।
मेरी दृढ़ मान्यता है कि आज के युग में, सोशल मीडिया के युग में कौन प्रभावित कर सकता है, कौन विचारों को जन्म दे सकता है उसका बहुत बड़ा महत्व है। As a group, former MLAs are very important influencers. You are opinion makers. आप बहुत बड़ा बदलाव ला सकते हो। और मेरा आपसे यह आग्रह रहेगा, समय-सीमा को देखते हुए, कि आप सक्रिय रहिए। विधायक बनना या न बनना एक मायने में महत्वपूर्ण है पर यह ध्यान रखिए, जो क्रिकेट के अंदर 11 खेलते हैं, उनकी जीत का आधार बाहर है। कोच है, फिजियोथेरेपिस्ट है, सपोर्ट स्टाफ है, morale booster है, बाहर है। आप वो बाहर वाले लोग हैं, जो अंदर वालों को जिता सकते हैं और यही आपका काम है। मैं समझता हूँ कि आप निश्चित रूप से ऐसा करेंगे। और कोशिश करूँगा कि आपका टैग ‘booth’ जल्दी से जल्दी यह ‘booth’ गायब हो। पर यह चुनाव में ही हो सकता है, होना चाहिए।”
अंत में मुझे थोड़ी सी चिंता हुई, मेरे स्वास्थ्य की नहीं मेरे मित्र, पूर्व मुख्यमंत्री की जिन्होंने कहा कि हम दबाव में हैं। हमारी वकालत तो महामहिम आपने कर दी पर मैं उनको आश्वस्त करना चाहता हूँ। राजस्थान की राजनीति में वह मेरे सबसे पुराने मित्र हैं और मेरे बड़े भारी शुभचिंतक भी हैं और हमारी पारिवारिक मित्रता भी गहरी है। मैं सार्वजनिक रूपसे, क्योंकि उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा है वो चिंतामुक्त हो जाएं। मैं न दबाव में रहता हूँ, ना दबाव देता हूँ, न दबाव में काम करता हूँ, न दबाव में किसी से काम कराता हूँ।