एनटीपीसी सिंगरौली हिन्दी पखवाड़ा के तहत “ज़ख्म़ मुंशी की कलम के” का मर्मस्पर्शी मंचन
शक्तिनगर, एनटीपीसी सिंगरौली द्वारा हिन्दी पखवाड़ा के अन्तर्गत आयोजित और संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के सहयोग से संचालित रंगमंड़ल समूहन कला संस्थान द्वारा प्रस्तुत दो दिवसीय समूहन नाट्य समारोह का शुभारम्भ गत संध्या दिनांक 26.09.2024 को किया गया। समारोह के प्रथम दिन कथा सम्राट मुंशी प्रेमचन्द के तीन कहानियों को आधार बनाकर समसामयिक दृष्टिकोण से मानवेन्द्र त्रिपाठी का लिखा नाटक ‘‘ज़ख्म़ – मुंशी की कलम के’’ का राजकुमार शाह के निर्देशन में मंचित हुआ। समारोह की संध्या का शुभारम्भ एनटीपीसी व बीएचईएल के सभी सम्मानित मुख्य अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन करके किया। तत्पश्चात् आगत अतिथियों का स्वागत पुष्प गुच्छ भेंट करके किया गया।
प्रेमचन्द की रचनाएं ऐसी समसामयिक और कालजयी हैं कि पठन पाठन के अन्तर्गत कोई न कोई कहानी लोग अक्सर पढ़ ही लेते है। इसी पढ़ने के क्रम में इस नाट्य प्रस्तुति की कल्पना बनी कि अगर कहानी के पात्र किताबों से निकल कर जीवन्त रुप में स्वयं लेखक के समक्ष उपस्थित हो जाये तो लेखक और पात्रों की मनःस्थिति और उनके बीच भावनाओं का आदान प्रदान किस रुप में होगा। यही विचार प्रस्तुति की रचना का आधार बनी। लेखक जब स्वयं पात्र के रुप में रचित रचना के पात्रों के साथ अभिनेता के रुप में अभिव्यक्ति व्यक्त करे तो नाट्य रचना के भावार्थ और स्पष्ट रुप से सामने आयेंगे। नाटक की शुरुआत प्रेमचन्द और ‘ठाकुर का कुआँ’ की मुख्य पात्रा गंगिया के संवाद से प्रारम्भ होती है। प्रेमचन्द की तीन कहानियाँ ठाकुर का कुआँ, कफ़न, ईदगाह के पात्रों के माध्यम से एक दूसरे से जुड़ती चली जाती है। कहानियों के संवाद को वर्तमान समय की स्थिति परिस्थिति के दृष्टिकोण से देखने की जो कोशिश लेखक मानवेन्द्र त्रिपाठी ने की है वह काबिले तारीफ है। अन्तिम दृश्य में हामिद के साथ सभी पात्रों का प्रेमचंद के समक्ष आना और यह कहना कि आज हम सब इस जमाने के लिए पुराने पड़ गये हैं, कोई नहीं पूछता हमें। कम से कम आप तो हमें अकेला मत छोड़िये। यह सुनकर प्रेमचन्द की वेदना द्रवित होकर उनकी लेखनी की शब्द की ही तरह फूट पड़ती है। तीनों कहानियों की आत्मा को निर्देशक राजकुमार शाह ने बडे़ ही संवेदनशील बनाकर दृश्यों का प्रभावशाली निर्माण किया है।