वन स्टाफ सेन्टर बैढ़न में एनजीओ के चयन में की जा रही लेट लतीफी पर अब चयन समिति के साथ-साथ सीडीपीओ भी सवालों के कटघर्रे में खड़े होते नजर आ रहे हैं। महिलाएं ही कहने लगे कि जिले के पालक मंत्री एक बार वन स्टाफ सेन्टर आकर घुम जाइए। गौरतलब है कि जिला मुख्यालय बैढ़न में वन स्टाफ सेन्टर के एनजीओ का अनुबन्ध पिछले महीने 3 अगस्त को जिला कार्यक्रम अधिकारी महिला एवं बाल विकास विभाग में समाप्त कर दिया था। एनजीओ का निर्धारित कार्यकाल पूरा हो गया था। किन्तु आरोप है कि इस दौरान डीपीओ के द्वारा वैकल्पिक तौर पर वन स्टाफ सेन्टर में रिक्त पदों की पूर्ति आगामी एनजीओ के चयन होने तक व्यवस्था नही किया। जिसके चलते वन स्टाफ सेन्टर में घरेलू एवं अन्य हिंसा पीड़ित युवती व महिलाओं को बेहतर तरीके से कांउसलिंग, विधिक सहायता जैसे अहम सलाह नही मिल पा रही है। आरोप पहै कि डीपीओ की मनमानी रवैया का खामियाजा हिंसा पीड़ित घरेलू व अन्य महिलाओं को भुगतना पड़ रहा है। आलम यह है कि वन स्टाफ सेन्टर में महीने में करीब 60 से ऊपर पीड़ित महिलाए आ रही है। किन्तु एनजीओ का चयन प्रक्रिया अधर में लटका होने के कारण काउंसलर, केस वर्कर, केस वर्कर विधिक सहायता, आईटी कर्मी, बहुदेशीय सहायक, सुरक्षा गार्ड के पद की पूर्ति न होने से पीड़ित महिलाएं केवल आवेदन पत्र देकर सीमित रह गई हैं। इन्हें सही सलाह नही मिल पा रही है। जबकि भारत सरकार की यह अतिमहत्वाकांक्षी योजना है। सरकार की मंशा है कि पीड़ित महिला व युवतियों को सलाह मिले, उन्हें कहीं भटकना न पड़े इसके बावजूद डीपीओ ने सरकार के उक्त मंशा पर पलीता लगा रहे हैं। करीब डेढ़ महीने से एनजीओ के चयन की प्रक्रिया चल रही है। कब तक में यह प्रक्रिया पूर्ण होगी। इसकी खोजखबर लेने के लिए कलेक्टर के साथ-साथ जिला पंचायत सीईओ भी फुर्सत में नही है। शायद इसी का फायद डीपीओ उठा भी रहे हैं।
एनजीओ के चयन में लेटलतीफी के पीछे…!
वन स्टाफ सेन्टर में अभी तक एनजीओ के चयन प्रक्रिया में लेटलतीफी क्यों की जा रही है। चयन समिति की मंशा क्या है। यह समझ से परे हैं और इसका सही जवाब भी सीडीपीओ के तरफ से नही मिल पा रहा है। जबकि चार एनजीओ ने आवेदन दिया है और इन चार एनजीओ में विधिमान्य कौन पात्र एवं अपात्र है। इसका निर्णय चयन समिति को करना है। निविदा 28 अगस्त को खोली गई थी। इसके बाद एनजीओ से संचालकों को तारीख पर तारीख मिलने लगी। निविदा खुलने के करीब 23 दिनों बाद भी चयन समिति किसी ठोस नतीजे पर नही पहुंची है। लिहाजा इस बात की चर्चा शुरू हो गई कि एनजीओ का चयन अधर में लटकाने के पीछे कहीं राजनीति या अन्य मसले आड़े तो नही आ रहे हैं।
औचक निरीक्षण करने की उठने लगी मांग
भारत सरकार के साथ-साथ प्रदेश सरकार भी महिला सशक्तिकरण को बढ़ा दे रही है। हिंसा पीड़ित महिलाओं को न्याय मिले। इसके लिए सरकार गंभीर हैं। किन्तु सरकार के नुमाईन्दे इतना गंभीर नजर नही आ रहे हैं। इसका ताजा उदाहरण वन स्टाफ सेन्टर में अधर में लटके एनजीओ के चयन प्रक्रिया का है। कई पीड़ित महिलाओं ने कहा कि जिले से महिला पंचायत मंत्री है और यह संयोग भी है कि जिले के पालक मंत्री भी महिला हैं। महिलाओं के दुख-दर्द को अच्छी तरह से दोनों मंत्री महोदया जानती हैं। नाम न छापने के शर्त पर पीड़ित महिला ने कहा कि यदि एक बार जिले के पालक मंत्री औचक रूप से वन स्टाफ सेन्टर का भ्रमण कर स्थिति का जायजा ले ले तो सब कुछ असलियत सामने आ जाएगी।
इनका कहना:-
वन स्टाफ सेन्टर में एनजीओ चयन संबंधी कार्रवाई प्रचलन में है। समिति के निर्णय पर है।
राजेश राम गुप्ता
जिला कार्यक्रम अधिकारी
आईसीडीएस, सिंगरौली
मंत्री महोदया जी एक बार वन स्टाफ सेन्टर तो आइए हिंसा पीड़ित महिलाओं को करीब दो महीने से नही मिल रही कानूनी सलाह, काउंसलर एवं केश वर्कर के पद हैं खालीसिंगरौली जिले में घरेलू एवं अन्य हिंसा पीड़ित युवती व महिलाओं को समुचित तरीके से सलाह विधि सहायता चिकित्सा, काउंसिंग जैसे सुविधाओं के लिए करीब दो महीने से सुविधाएं नही मिल पा रही है।
Pradeep Tiwari
मैं, प्रदीप तिवारी, पिछले 10 वर्षों से पत्रकारिता से जुड़ा हूँ। सबसे पहले, मैं एक स्थानीय समाचार चैनल में एक रिपोर्टर के रूप में शामिल हुआ और फिर समय के साथ, मैंने लेख लिखना शुरू कर दिया। मुझे राजनीति और ताज़ा समाचार और अन्य विषयों से संबंधित समाचार लिखना पसंद है।
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