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एनजीओ के चयन में एक पखवाड़े से पक रही खिचड़ी

Pradeep Tiwari
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एनजीओ के चयन में एक पखवाड़े से पक रही खिचड़ी
वन स्टाफ सेन्टर का मामला, चर्चित डीपीओ की भूमिका संदिग्ध, घरेलू एवं हिंसा पीड़ित युवती व महिलाएं दर-दर भटकने मजबूर
जिला मुख्यालय बैढ़न में वन स्टाफ सेन्टर में आने वाले घरेलू एवं हिंसा पीड़ित युवती व महिलाओं को दर-दर भटकने के लिए डीपीओ के एक निर्णय ने मजबूर कर दिया है। कलेक्टर तक भी बात पहुंची। लेकिन क्या मजाल है कि डीपीओ के मनमानी पर अंकुश लगा सके। आलम यह है कि एक पखवाड़े से वन स्टाफ सेन्टर में एनजीओ से कामकाज कराने आवेदन लेने के बाद भी कार्रवाई ठण्डेबस्ते में है। इधर डीपीओ उक्त सवालों का जवाब देने से गुरेज करते रहे।
गौरतलब है कि भारत सरकार ने घरेलू एवं हिंसा पीड़ित युवती व महिलाओं को आश्रय देने एवं हिंसा से पीड़ित महिलाओं को एक ही स्थान पर कई तरह के सुविधाएं मुहैया कराना है। वन स्टाफ सेन्टर में हिंसा से पीड़ित महिलाओं एवं बालिकाओं को अस्थायी आश्रय, पुलिस डेस्क, विधि सहायत, चिकित्सा, काउंसलिंग एवं तुरन्त आपातकालीन और गैर-आपातकालीन सुविधाओं मुहैया कराए जाने का प्रावधान है। किन्तु जिला कार्यक्रम अधिकारी एवं महिला बाल विकास सिंगरौली ने भारत सरकार के मंशा पर पानी फेरने में कोई कोर कसर नही छोड़ रहे हैं। वन स्टाफ सेन्टर (सखी) योजना अंतर्गत कार्यरत एनजीओ का पिछले माह 3 अगस्त को अनुबन्ध का समय सीमा पूर्ण होने पर समाप्त करने आदेश जारी कर दिया। इसके बाद वन स्टाफ सेन्टर (सखी) में आने वाले घरेलू हिंसा पीड़ित महिलाओं को सुविधाएं एवं अन्य जानकारियां नही मिल पा रही है। डीपीओ ने सभी जिम्मा प्रशासक को सौंंप दिया है। जबकि यहां पर काउंसलर, केस वर्कर, केस वर्कर विधिक सहायता, आईटी कर्मी, सुरक्षाकर्मी, बहुउद्देशीय सहायक के पद 3 अगस्त के बाद से रिक्त हो गए हैं। आरोप है कि डीपीओ की मनमानी चल रही है। जहां कलेक्टर भी डीपीओ पर शिकंजा नही कस पा रहे हैं और डीपीओ इसी का भरपूर फायदा उठा रहे हैं। इधर एनजीओ का अनुबन्ध 3 अगस्त को समाप्त होने के बाद वन स्टाफ सेन्टर (सखी) में कार्य करने वाले एवं निर्धारित मापदंड व सरकार के तय गाइडलाइन व मानक को पूर्ण करने वाले इच्छुक एनजीओ से निविदा मगाई गई। जहां 27 अगस्त निविदा की अंतिम तिथि और 28 अगस्त को निविदा खोला जाना था। चर्चा है कि 28 अगस्त को निविदा खोली गई। किन्तु मूल्यांकन डीपीओ अकेले कर लिया। जिसका विरोध होने पर डीपीओ ने 2 सितम्बर को फिर से तारीख मुर्कर कर आवेदन करने वाले एनजीओ अमृत संस्थान समिति नवजीवन बिहार, सुसंस्कार सोशल डबलपमेंट सोसाइटी बैढ़न, जय प्रकाश नारायण युवा मंडल बड़खड़ा एवं सोसाइटी फॉर वुमन अवेयरनेस एंड रूलर इकोनॉमी जनरेशन मालती कुन्ज चितरंगी को अनिवार्य रूप से उपस्थित होने बुलाया गया। लेकिन अभी तक वन स्टाफ सेन्टर (सखी) के लिए एनजीओ का चयन करने में प्रशासन रूचि नही दिखाया है। यह चर्चा है कि जिनका मूल्यांकन में 70 अंक भी नही पहुंच पा रहा है और कुछ एनजीओ मानक अहर्ताएं से कोसों दूर हैं। कुछ एनजीओ पर राजनैतिक दखल व नेता शिफारिस कर रहे हैं। वही एक एनजीओ के लिए खुद साहब की रूचि है। इसी के चलते एक पखवाड़े बाद भी चयन समिति किसी नतीजे पर नही पहुंच पा रही है और अपने कारनामों को लेकर चर्चित डीपीओ सब पर भारी नजर आ रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि उनकी जीद है कि पुराने एनजीओ को किसी तरह बाहर का रास्ता दिखा दें। वही चितरंगी के एनजीओ को भी दूर रखने की मंशा है। इसके पीछे क्या है? यह तो डीपीओ ही बता पाएंगे।

Pradeep Tiwari

Pradeep Tiwari

मैं, प्रदीप तिवारी, पिछले 10 वर्षों से पत्रकारिता से जुड़ा हूँ। सबसे पहले, मैं एक स्थानीय समाचार चैनल में एक रिपोर्टर के रूप में शामिल हुआ और फिर समय के साथ, मैंने लेख लिखना शुरू कर दिया। मुझे राजनीति और ताज़ा समाचार और अन्य विषयों से संबंधित समाचार लिखना पसंद है।

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