अवैध रेत खनन
खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 (एमएमडीआर अधिनियम 1957) की धारा 3(ई) के तहत रेत को एक लघु खनिज के रूप में परिभाषित किया गया है। रेत खनन को खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 [एमएमडीआर अधिनियम] और इस अधिनियम की धारा 15 के तहत संबंधित राज्य सरकारों/केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) प्रशासनों द्वारा तैयार किए गए खनिज रियायत नियमों के अनुसार विनियमित किया जाता है। इसके अलावा, खान एवं खनिज अधिनियम की धारा 23सी, राज्य सरकारों/केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासनों को खनिजों के अवैध खनन, परिवहन और भंडारण को रोकने और उससे जुड़े उद्देश्यों के लिए नियम बनाने और रेत खनन दिशा-निर्देशों से संबंधित विभिन्न प्रावधानों को लागू करने का अधिकार देती है।
अवैध रेत खनन से होने वाली पर्यावरणीय क्षति में नदी तल का क्षरण, जलीय आवास की क्षति, गन्दगी, जल स्तर में कमी, भूमि कटाव, बाढ़, बुनियादी ढांचे को नुकसान, उपजाऊ भूमि की हानि, स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव, जल की गुणवत्ता में कमी तथा नदी शासन के पारिस्थितिक संतुलन पर खतरनाक प्रभाव शामिल हैं।
वैध रेत खनन को निर्धारित निकासी सीमाओं का पालन करना होता है। वैध रेत खनन को पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) अधिसूचना एस.ओ. 1533 (ई) दिनांक 14.09.2006 और उसके बाद के संशोधनों के निर्धारित प्रावधानों के अनुसार अनुमोदित खनन योजना के आधार पर राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (एसईआईएए) द्वारा पर्यावरणीय स्वीकृति दी जाती है। मंत्रालय ने सतत रेत खनन दिशानिर्देश, 2016 और रेत खनन के लिए प्रवर्तन और निगरानी दिशानिर्देश 2020 भी जारी किए हैं ताकि सतत रेत खनन और पर्यावरण के अनुकूल प्रबंधन प्रथाओं को अपनाने के लिए एक उपयुक्त नियामक व्यवस्था लागू की जा सके। पर्यावरणीय मंजूरी निर्धारित सामान्य और विशिष्ट शर्तों के साथ दी जाती है, जिसमें निकाली जाने वाली रेत की मात्रा और रेत खनन की गहराई शामिल है। मंत्रालय द्वारा जारी ‘सतत रेत खनन दिशानिर्देश, 2016′ और रेत खनन के लिए प्रवर्तन एवं निगरानी दिशानिर्देश (ईएमजीएसएम), 2020’ के अनुपालन में जल प्रवाह की प्रकृति, प्रवाह की मात्रा, नदी की चौड़ाई, पुनःपूर्ति क्षमता, वृद्धि और गिरावट की डिग्री, सार्वजनिक बुनियादी ढांचे की मौजूदगी आदि के आधार पर निर्णय लिया जाता है। मामलों के आधार पर रेत खनन प्रस्ताव की जांच करने के बाद राज्य स्तरीय विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (एसईएसी) द्वारा निष्कर्षण सीमा की सिफारिश की जाती है और राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (एसईआईएए) द्वारा अनुमोदित किया जाता है। इसके अलावा मंत्रालय ने 25 जुलाई 2018 के एस.ओ. 3611(ई) के तहत रेत खनन के लिए जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट बनाने की प्रक्रिया निर्धारित की है। मंत्रालय द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट पर्यावरण मंजूरी के लिए आवेदन, रिपोर्ट तैयार करने और परियोजनाओं के मूल्यांकन का आधार बनेगी। रिपोर्ट को हर पांच साल में एक बार अपडेट किया जाएगा। मंत्रालय ने काफी विचार-विमर्श और गहन विश्लेषण के बाद उपरोक्त प्रक्रियाएं निर्धारित की हैं और निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन करने से लघु खनिजों के खनन के संबंध में वैज्ञानिक, व्यवस्थित और पर्यावरण अनुकूल खनन को बढ़ावा मिलेगा।
हवाई सर्वेक्षण और रिमोट सेंसिंग तथा भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) अनुप्रयोगों आदि के उपयोग का प्रावधान “सतत रेत खनन प्रबंधन दिशा-निर्देश 2016” तथा “रेत खनन के लिए प्रवर्तन और निगरानी दिशा-निर्देश” 2020 में निर्धारित किया गया है। इसके अलावा, खान मंत्रालय ने भारतीय खान ब्यूरो के माध्यम से, भास्कराचार्य अंतरिक्ष अनुप्रयोग और भू-सूचना विज्ञान संस्थान (बीआईएसएजी), गांधीनगर तथा इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (एमईआईटीवाई) के साथ समन्वय में खनन निगरानी प्रणाली (एमएसएस) विकसित की है। इससे देश में अवैध खनन गतिविधि पर अंकुश लगाने के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा सकेगा।
यह जानकारी आज राज्यसभा में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री श्री कीर्ति वर्धन सिंह ने एक लिखित उत्तर में दी।