---Advertisement---

पृथ्वी विज्ञान मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने गोवा के “ध्रुवीय एवं महासागर अनुसंधान” केन्द्र में “सागर भवन” और “पोलर भवन” का उद्घाटन किया, जो भारत में अपनी तरह के प्रथम और विश्व में कुछ गिने-चुने केंद्रों में से एक है

Pradeep Tiwari
By
On:
Follow Us

केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) तथा प्रधानमंत्री कार्यालय, परमाणु ऊर्जा विभाग, अंतरिक्ष विभाग, कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने मंगलवार को गोवा के “राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं महासागर अनुसंधान केंद्र” (एनसीपीओआर) में “सागर भवन” और “पोलर भवन” का उद्घाटन किया, जो भारत में अपनी तरह के दो प्रथम केंद्र हैं तथा दुनिया में भी ऐसे कुछ ही केंद्र हैं।

ऐसे समय में जब दुनिया भर के देश महासागरीय भू-राजनीति या महासागरों की भू-राजनीति की बारीकियों पर विचार-विमर्श कर रहे हैं, डॉ. जितेंद्र सिंह ने विश्वास व्यक्त करते हुए कहा कि आने वाले समय में, संस्थान भू-राजनीति में भारत की बढ़ती भूमिका को सुगम बनाएगा और यहां तक ​​कि भारत को महासागरीय भू-राजनीति में वैश्विक भूमिका निभाने में सक्षम बनाएगा। उन्होंने कहा कि इसके अलावा नए केंद्र संस्थान को मौसम के पैटर्न के अध्ययन में वर्चस्व हासिल करने और जलवायु संबंधी चिंताओं को दूर करने में भी सक्षम बनाएंगे।

नव-उद्घाटित केंद्र, ध्रुवीय और महासागरीय अध्ययनों पर भारत के बढ़ते फोकस की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

डॉ. जितेंद्र सिंह का यह दौरा एनसीपीओआर की रजत जयंती के अवसर पर हुआ।

 

डॉ. जितेंद्र सिंह ने एनसीपीओआर की 25 साल की यात्रा पर प्रकाश डालने वाली एक डॉक्यूमेंट्री का भी विमोचन किया और आगामी संग्रहालय का वर्चुअल वॉकथ्रू भी किया, जिसमें लोगों के विज्ञान के प्रति जुड़ाव के अनुभवों को शामिल करने की उम्मीद है। उन्होंने “साइंस ऑन स्फीयर (एसओएस)” पहल भी शुरू की, जो पृथ्वी प्रणालियों और जलवायु से संबंधित डेटा को प्रदर्शित करने के लिए एक 3डी विज़ुअलाइजेशन प्लेटफॉर्म है।

11,378 वर्ग मीटर में फैला पोलर भवन अब एनसीपीओआर परिसर में सबसे बड़ा भवन है और इसका निर्माण 55 करोड़ रुपए की लागत से किया गया है। इसमें ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान के लिए प्रयोगशालाएं, वैज्ञानिक कर्मियों के लिए 55 कमरे, एक सम्मेलन कक्ष, सेमिनार हॉल, पुस्तकालय और कैंटीन शामिल हैं। इसमें नवनिर्मित एसओएस सुविधा है और अंततः यह भारत के प्रथम ध्रुवीय और महासागर संग्रहालय का स्थान बन जाएगा।

सागर भवन 1,772 वर्ग मीटर में फैला हुआ है। इसके निर्माण की लागत 13 करोड़ रुपए है। इसमें दो -30° सेल्सियस आइस कोर प्रयोगशालाएं और तलछट और जैविक नमूनों को संग्रहित करने के लिए +4°C भंडारण इकाइयां शामिल हैं। भवन में 29 कमरे भी हैं, जिनमें ट्रेस मेटल और आइसोटोप अध्ययन के लिए एक धातु-मुक्त क्लास 1000 स्वच्छ कमरा भी शामिल है।

अंटार्कटिका के गर्म कपड़े पहने डॉ. जितेन्द्र सिंह ने माइनस 20 डिग्री सेंटीग्रेड प्रयोगशाला के हिस्से को भी देखा।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि इन सुविधाओं के जुड़ने से एनसीपीओआर एकीकृत ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान क्षमताओं वाले चुनिंदा संस्थानों के समूह में शामिल हो गया है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि ध्रुवीय घटनाओं की सीमा पार प्रकृति को देखते हुए संस्थान के वैज्ञानिक प्रयास न केवल क्षेत्रीय रूप से प्रासंगिक हैं, बल्कि वैश्विक रूप से भी महत्वपूर्ण हैं।

विशेषज्ञों के आकलन का हवाला देते हुए डॉ. सिंह ने कहा कि दुनिया का लगभग 70 प्रतिशत ताजा पानी ध्रुवीय बर्फ में है। यदि बर्फ पिघलती है, तो इससे समुद्र का स्तर तेजी से बढ़ सकता है और इससे निचले तटीय क्षेत्र प्रभावित होंगे। भारत की तटरेखा अब 1,000 किलोमीटर से अधिक होने का अनुमान है। ऐसे परिवर्तन पर्यावरणीय और सामाजिक-आर्थिक चुनौतियां पैदा करते हैं, जिनके लिए निरंतर वैज्ञानिक निगरानी और मोचन की आवश्यकता होती है।

 

उन्होंने अंटार्कटिका (मैत्री और भारती स्टेशनों के साथ), आर्कटिक (हिमाद्रि) और हिमालय (हिमांश) सहित महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भारत की अनुसंधान संबंधी उपस्थिति को बनाए रखने में एनसीपीओआर की भूमिका को भी स्वीकार किया। संस्थान भारत के डीप ओशन मिशन का भी नेतृत्व करता है, जो देश की ब्लू इकोनॉमी रोडमैप के तहत एक प्रमुख पहल है।

महासागर विज्ञान को राष्ट्रीय विकास के लक्ष्यों से जोड़ते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने वैश्विक मामलों में महासागरीय भू-राजनीति की बढ़ती प्रासंगिकता की ओर इशारा किया। उन्होंने कहा कि खासकर सरकार के “2047 तक विकसित भारत” के दृष्टिकोण के मद्देनजर, एनसीपीओआर जैसे संस्थान भारत की वैज्ञानिक और रणनीतिक भागीदारी के लिए केंद्र में होंगे। उन्होंने याद दिलाया कि प्रधानमंत्री ने लाल किले से लगातार दो स्वतंत्रता दिवस के भाषणों में ब्लू इकोनॉमी और डीप ओशन मिशन के महत्व पर जोर दिया है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने भारत की आर्कटिक नीति (2022) और भारतीय अंटार्कटिक अधिनियम (2022) को ऐसे मार्गदर्शक ढांचे के रूप में संदर्भित किया, जो ध्रुवीय क्षेत्रों में विज्ञान-आधारित, पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार जुड़ाव को सक्षम बनाते हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय अंटार्कटिक अधिनियम महाद्वीप में भारत की गतिविधियों के लिए कानूनी आधार प्रदान करता है, जो अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं और मानकों के अनुरूप है।

 

हाल के वर्षों में भारत के ध्रुवीय अनुसंधान ने अपनी भौगोलिक और लौकिक पहुंच का विस्तार किया है, तथा इसके मिशन अब विभिन्न मौसमों में कनाडा के आर्कटिक, ग्रीनलैंड और मध्य आर्कटिक महासागर में पहुंच रहे हैं।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने वैश्विक जलवायु और महासागर पहलों में रणनीतिक, विज्ञान-संचालित भागीदारी की आवश्यकता पर जोर देते हुए अपने भाषण का समापन किया। उन्होंने कहा कि एनसीपीओआर में नए बुनियादी ढांचे से इस क्षेत्र में भारत के निरंतर योगदान को समर्थन मिलने और गहन अंतरराष्ट्रीय सहयोग को सुगम बनाने की उम्मीद है।

Pradeep Tiwari

Pradeep Tiwari

मैं, प्रदीप तिवारी, पिछले 10 वर्षों से पत्रकारिता से जुड़ा हूँ। सबसे पहले, मैं एक स्थानीय समाचार चैनल में एक रिपोर्टर के रूप में शामिल हुआ और फिर समय के साथ, मैंने लेख लिखना शुरू कर दिया। मुझे राजनीति और ताज़ा समाचार और अन्य विषयों से संबंधित समाचार लिखना पसंद है।

For Feedback - urjadhaninews1@gmail.com
Join Our WhatsApp Group

Leave a Comment