विरासत संरक्षण के साथ ही स्वास्थ्य सेवा को आगे बढ़ाना : सीसीआरएएस कार्यशाला में आयुर्वेदिक पांडुलिपियों की असीमित संभावनाओं को लेकर छात्रों को प्रशिक्षित किया जाएगा
भारत की पांडुलिपि विरासत पारंपरिक ज्ञान का खजाना है और आयुर्वेद में आधुनिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए अपार क्षमता हैः श्री प्रतापराव जाधव, केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार)
यह पहल शास्त्रीय ज्ञान के साक्ष्य-आधारित सत्यापन को बढ़ाएगी, जिससे समकालीन स्वास्थ्य सेवा और वैश्विक चिकित्सा प्रगति में इसका इस्तेमाल सुनिश्चित होगा : सचिव आयुष
भारत सरकार के आयुष मंत्रालय के केंद्रीय आयुर्वेदिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (सीसीआरएएस) और संस्कृति मंत्रालय के राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन (एनएमएम) के सहयोग से भुवनेश्वर में स्थित केंद्रीय आयुर्वेद अनुसंधान संस्थान (सीएआरआई) में 13 मार्च से 24 मार्च, 2025 तक “आयुर्वेदिक पांडुलिपियों को सुरक्षित रखते हुए इसे दूसरी लिपि में सटीकता के साथ परिवर्तित करने से संबंधी (अनुवाद क्षमता निर्माण) कार्यशाला” का आयोजन किया जा रहा है।
केंद्रीय आयुष राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री प्रतापराव जाधव ने इस तरह की गतिविधि के महत्व को स्वीकार कर सीसीआरएएस के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि भारत की पाण्डुलिपि विरासत पारंपरिक ज्ञान का खजाना है और आयुर्वेद में आधुनिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए अपार संभावनाएं हैं। इस पहल के माध्यम से हम न केवल इन अमूल्य ग्रंथों को संरक्षित कर रहे हैं बल्कि युवा छात्रों को उन्हें समझने और समकालीन शोध में एकीकृत करने के लिए सशक्त भी बना रहे हैं।
आयुष मंत्री ने आगे कहा कि यह प्रयास वैश्विक स्तर पर आयुर्वेद को पुनर्जीवित करने की हमारी प्रतिबद्धता को मजबूत करता है और साक्ष्य-आधारित चिकित्सा में इसकी प्रासंगिकता सुनिश्चित करता है। इसके अलावा पांडुलिपि अध्ययन में विशेषज्ञता को बढ़ावा देकर हम आयुर्वेद पेशेवरों के लिए रोजगार के नए अवसर सृजित कर रहे हैं साथ ही सार्वजनिक स्वास्थ्य में पारंपरिक ज्ञान की भूमिका को बढ़ा रहे हैं। इस तरह की पहल अतीत को भविष्य के साथ जोड़ने के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाती है, जिससे आयुर्वेद आने वाली पीढ़ियों के लिए समग्र और वैज्ञानिक तरीके से स्वास्थ्य देखभाल की आधारशिला बन जाएगा।
वैज्ञानिक समूह के लिए इस पहल के महत्व पर जोर देते हुए आयुष मंत्रालय के सचिव वैद्य राजेश कोटेचा ने कहा कि आयुर्वेदिक पांडुलिपियों का अनुवाद एक महत्वपूर्ण प्रयास है जो पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक वैज्ञानिक जांच के साथ जोड़ता है। युवा छात्रों को इन ग्रंथों का आलोचनात्मक विश्लेषण और व्याख्या करने के कौशल से सुसज्जित करके हम आयुर्वेद अनुसंधान की एक नई लहर को बढ़ावा दे रहे हैं। यह पहल शास्त्रीय ज्ञान के साक्ष्य-आधारित सत्यापन को बढ़ाएगी और समकालीन स्वास्थ्य सेवा व वैश्विक चिकित्सा प्रगति में इसके इस्तेमाल को सुनिश्चित करेगी।
भारत सरकार के ‘ज्ञान भारत मिशन’ के साथ तालमेल बैठाते हुए कार्यशाला भारत की पांडुलिपि विरासत के सर्वेक्षण, दस्तावेजीकरण और संरक्षण का समर्थन करती है। सीसीआरएएस के महानिदेशक प्रो. (वैद्य) रबीनारायण आचार्य ने इस बात पर जोर दिया कि सीसीआरएएस ने 5000 से अधिक चिकित्सा पांडुलिपियों का डिजिटलीकरण किया है और कई अन्य पांडुलिपियों को सूचीबद्ध भी किया है। ओडिशा में आयुर्वेदिक पांडुलिपियों का खजाना है। यह पहल भावी पीढ़ियों के लिए भारत की चिकित्सा विरासत को पुनर्जीवित करने और युवा आयुर्वेद पेशेवरों के लिए रोजगार के नए अवसर सृजित करने की दिशा में एक ठोस पहल है।
कार्यशाला का उद्देश्य युवा आयुर्वेद शोधकर्ताओं और संस्कृत विद्वानों को आयुर्वेदिक पांडुलिपियों के अध्ययन, अनुवाद और प्रकाशन में प्रशिक्षित करना है, ताकि समकालीन अनुसंधान के लिए उनकी विशाल क्षमता को सामने लाया जा सके। ओडिशा अपनी समृद्ध पांडुलिपि विरासत के साथ एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान कर रहा है। यह कार्यशाला आयुर्वेदिक ज्ञान को संरक्षित करने और बढ़ावा देने के लिए एक कुशल मानव संसाधन पूल बनाने में मदद करेगी। इस कार्यशाला में 10 से अधिक प्रतिष्ठित विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में
ओडिशा के 30 छात्र भाग लेंगे।
आयुर्वेदिक साहित्यिक अनुसंधान में अग्रणी के रूप में सीसीआरएएस ने 94 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित की हैं और दुर्लभ पांडुलिपियों को संरक्षित करने के लिए आयुष पांडुलिपि उन्नत भंडार (एएमएआर) और आयुर्वेद ऐतिहासिक प्रकाशकों का प्रदर्शन (एसएएचआई) जैसी डिजिटल पहल विकसित की है। यह कार्यशाला आयुर्वेदिक ग्रंथों का व्यवस्थित रूप से अध्ययन करने और आलोचनात्मक रूप से संपादित करने के लिए एक राष्ट्रव्यापी सीसीआरएएस पहल का हिस्सा है।
देश भर में कार्यशालाओं की इस शृंखला के माध्यम से सीसीआरएएस आयुर्वेद के साहित्यिक अनुसंधान को मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध है, यह सुनिश्चित करते हुए कि भारत का पारंपरिक चिकित्सा ज्ञान वैज्ञानिक प्रगति और सामाजिक कल्याण के लिए प्रासंगिक बना रहे। इस तरह के प्रयास बेहतर स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के लिए पारंपरिक ज्ञान को सामने लाने में सहायक होंगे।