डीएमएफ दफ्तर के टेंडर में झोल, ईई शक के घेरे में

डीएमएफ दफ्तर के टेंडर में झोल, ईई शक के घेरे में
जिला खनिज प्रतिष्ठान दफ्तर एवं ऑडिटोरियम के निर्माण के लिए 7 करोड़ 42 लाख रूपये है मंजूर

सिंगरौली 1 नवम्बर। जिला खनिज प्रतिष्ठान दफ्तर एवं ऑडिटोरियम निर्माण के लिए 7 करोड़ 42 लाख रूपये मंजूर है। जहां भवन के टेंडर में झोल की बू आ रही है। हालांकि यह टेंडर पिछले वर्ष 2024 अप्रैल महीने में हुआ था। टेंडर में सीडा के प्रभारी कार्यपालन यंत्री ने व्यापक खेल खेला है।
दरअसल सिंगरौली जिला खनिज प्रतिष्ठान कार्यालय एवं ऑडिटोरियम के निर्माण कार्य के लिए पिछले वर्ष 12 अप्रैल तक ऑनलाइन टेंडर आमंत्रित किया गया था। जहां इस कार्य के लिए एक ही संविदाकार का टेंडर आया और बोर्ड सदस्य ने टेंडर को खोल भी दिया। उक्त भवन टेंडर के लिए उक्त भवन निर्माण का कार्य मेसर्स जीजी इन्टरप्राइजेज इंदौर को दिया गया। हालांकि कार्य की अनुमानित लागत 7 करोड़ 42 लाख रूपये से ऊपर की गई थी और स्वीकृत दर में 3.97 प्रतिशत एसओआर से अधिक माना गया। हालांकि बाद में खनिज प्रतिष्ठान बोर्ड ने एसओआर से अधिक भुगतान करने के लिए सहमति नही हुआ। हालांकि इसमें जीएसटी अतिरिक्त है। अब सवाल उठ रहा है कि किस भवन के निर्माण के लिए एक बार ही निविदा आमंत्रित की गई और उक्त कार्य के निविदा में एक ही संविदाकार हिस्सा लिया। इधर चर्चा है कि एक अन्य संविदाकार ने भी निविदा में हिस्सा लिया था, लेकिन तकनीकी कमियॉ बताकर उसके निविदा को निरस्त कर दिया गया। निविदा किसने डाला, कौन ठेकेदार है, क्यों निरस्त किया गया, इसका मुख्य वजह आरटीआई के तहत जानकारी देने में सिंगरौली विकास प्राधिकरण हाथ खड़े कर लिया है। अब यही से इस बात की चर्चा होने लगी है कि करोड़ों के इस कार्य को एक बार ही निविदा क्यों आमंत्रित की गई और इसका व्यापक प्रचार-प्रसार प्रभारी कार्यपालन यंत्री मनोज बाथम सीडा ने क्यों नही कराया। इसके पीछे कई रहस्य छुपे हैं और इस रहस्यमयी खेल में कई खिलाड़ी शामिल हैं। कार्यपालन यंत्री मनोज बाथम अपने कारनामों के चलते शुरू से ही चर्चाओं में रहे हैं। यदि इनके कामकाज की जांच करा दी जाये तो कई चौकाने वाले मामले सामने आ सकते हैं। हालांकि अब एक महीने पूर्व तक उन्हें जिला पंचायत से खुला संरक्षण था। वह जगजाहिर है। डीएमएफ दफ्तर एवं ऑडिरोटियम निर्माण कार्य के टेेंडर में सवा साल बाद कुछ बातें निकलने लगी हैं और इन बातों में कितना दम है, इसकी निष्पक्ष जांच के बाद ही पता चल पाएगा। नये कलेक्टर ही उक्त मामले की जांच कराकर सच्चाई सामने ला सकते हैं।
जवाब देने में आनाकानी, कहा मेरा तबादला हो गया है
उक्त टेंडर को खोलने वाले सीडा के तत्कालीन कार्यपालन यंत्री मनोज बाथम से पिछले दिनों जानकारी ली गई कि एक निविदा को खोलने का प्रावधान है कि नही। उन्होंने लोक निर्माण विभाग के पत्र का हवाला देकर कहा कि मेरा तो यहां से तबादला हो गया है। तीन-चार महीने से बाहर हूॅ। जबकि मनोज बाथम को सिंगरौली के साथ-साथ सीधी ईई आरईएस का अतिरिक्त प्रभार था। तबादला होने की खबर आरईएस विभाग के अमले को भी नही है। इनका कब तबादला हुआ, यह तो नही बताया जा सकता, लेकिन पूरा कामकाज सिंगरौली में ही कर रहे हैं। झूठ क्यों बोला, इसे तो ईई ही बताएंगे।
लोनिवि से जारी संसोधित पत्र पर खोला टेंडर
म.प्र. लोक निर्माण विभाग मंत्रालय भोपाल के तत्कालीन सचिव विजय सिंह ने 28 जनवरी 2013 में एक पत्र जारी किया था। जिसमें प्रथम आमंत्रण में प्राप्त एक निविदा के निराकरण का हवाला दिया है। लोनिवि सचिव ने इस बात का जिक्र किया है कि मरम्मत कार्यो के प्रथम आमंत्रण में प्राप्त एकल निविदा खोले जाने का निर्णय दिया गया है। साथ ही पत्र में इस बात का भी उल्लेख है कि पर्याप्त प्रचार-प्रसार के उपरांत प्राप्त एकल निविदा खोली जाये एवं निर्माण हेतु सक्षम अधिकारी द्वारा निर्णय लिया जाये। यहां बताते चले कि डीएमएफ दफ्तर एवं ऑडिटोरियम का निर्माण कार्य है, न की मरम्मत कार्य। इसी पत्र का हवाला देकर प्रभारी कार्यपालन यंत्री ने खेला कर दिया। हालांकि निविदा खोलने के लिए टीम गठित की गई थी। जिसमें प्रोजेक्ट कन्सलटेंट, सब इंजीनियर, सहायक यंत्री एवं कार्यपालन यंत्री शामिल थे। इन्ही के सहमति से निविदा खोली गई। लोनिवि के संसोधन पत्र का हवाला दिया है।