सरकार की विवेकपूर्ण मौद्रिक और व्यापार नीति, मजबूत आउटपुट वृद्धि के सहयोग के चलते वित्त वर्ष 2024 में खुदरा मुद्रास्फीति कम होकर चार साल के न्यूनतम 5.4 प्रतिशत पर आ गई
कोर सेवाओं में मुद्रास्फीति वित्त वर्ष 2024 में 9 साल के न्यूनतम स्तर पर आ गई
भारतीय रिजर्व बैंक को उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2025 में हेडलाइन मुद्रास्फीति 4.5 प्रतिशत पर आ जाएगी और वित्त वर्ष 2026 में यह घटकर 4.1 प्रतिशत हो जाएगी
आर्थिक सर्वेक्षण में नए माप एवं वस्तुओं के अनुरूप उपभोक्ता मूल्य सूचकांक को संशोधित किए जाने सिफारिश की गई है
आर्थिक सर्वेक्षण में दलहन एवं तिलहन की फसलों का दायरा बढ़ाकर और आधुनिक भंडारण एवं प्रसंस्करण सुविधाओं का विकास कर मुद्रास्फीति कारक दबावों को कम करने की सलाह दी गई है
आज संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में कीमतों और मुद्रास्फीति पर नियंत्रण करने पर विशेष जोर दिया गया, क्योंकि ‘निम्न और स्थिर मुद्रास्फीति सतत आर्थिक विकास की कुंजी हैं।’ इसमें कहा गया है कि सरकार और केंद्रीय बैंकों के समक्ष मुद्रास्फीति को मध्यम स्तर पर रखते हुए देश की वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने की चुनौती है। इस नाजुक संतुलन को हासिल करने के लिए आर्थिक संकेतकों की सतर्कता से निगरानी करने और समयोचित और समुचित सुधारात्मक कदम उठाने की जरूरत है। कीमतों को स्थिर रखने के भारतीय रिजर्व बैंक के लक्ष्य और केंद्र सरकार की नीतिगत कदम उठाने की प्रतिबद्धता के फलस्वरूप भारत खुदरा मुद्रास्फीति को वित्त वर्ष 2024 में कोविड-19 महामारी काल के बाद के पिछले चार साल के न्यूनतम यानी 5.4 प्रतिशत के स्तर पर कायम रखने में सफल रहा है।
आर्थिक सर्वेक्षण में इस तथ्य को रेखांकित किया गया है कि भारत में खुदरा मुद्रास्फीति अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) के आंकड़ों के अनुसार 2022-23 में उभरते हुए बाजारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (इएमडीई) और विश्व औसत से काफी कम रही है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि स्थापित मुद्रा नीतियों, आर्थिक स्थिरता, मांग और आपूर्ति स्थितियों का संतुलन कायम रखने वाले पूरी तरह विकसित एवं कुशल बाजारों और मुद्रा स्थिरता ने मुद्रास्फीति का प्रभावी प्रबंधन करने में योगदान दिया है। ऐतिहासिक तथ्य यह है कि विकसित अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति आमतौर पर उभरते बाजारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले काफी कम होती है।