जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की छठी आकलन रिपोर्ट की संश्लेषण रिपोर्ट के अनुसार, मानवीय गतिविधियों ने मुख्य रूप से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के माध्यम से साफ तौर पर वैश्विक तापमान में वृद्धि की है। इस वजह से 2011-2020 के दशक में वैश्विक सतह का तापमान 1850-1900 के स्तर से 1.1 डिग्री सेल्सियस ऊपर पहुंच गया है। आईपीसीसी की छठी आकलन रिपोर्ट में अपने योगदान में कार्य समूह II ने प्रभाव, अनुकूलन और भेद्यता से निपटने के लिए बताया है कि दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन समुद्री, मीठे पानी और स्थलीय परितंत्र और परितंत्र सेवाओं, जल तथा खाद्य सुरक्षा, बस्तियों तथा बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य एवं कल्याण, और अर्थव्यवस्थाओं तथा संस्कृति को तेजी से प्रभावित कर रहा है।
2023 में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) को प्रस्तुत भारत के तीसरे राष्ट्रीय संवाद में बताया गया है कि भारत बाढ़ और सूखे से लेकर अत्यधिक गर्मी (हीटवेव) और ग्लेशियर पिघलने तक जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की पूरी श्रृंखला का सामना कर रहा है। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव क्षेत्रों, जैव विविधता और वन; कृषि; जल संसाधन; तटीय और समुद्री परितंत्र; मानव स्वास्थ्य; महिला-पुरुष; शहरी और बुनियादी ढांचे में देखे जाते हैं।
विभिन्न क्षेत्रों में भारत की जलवायु क्रियाएं विभिन्न कार्यक्रमों और योजनाओं में अंतर्निहित हैं। जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (एनएपीसीसी) सभी जलवायु क्रियाओं के लिए व्यापक रूपरेखा प्रदान करती है और इसमें सौर ऊर्जा, बढ़ी हुई ऊर्जा दक्षता, टिकाऊ आवास, जल, हिमालयी परितंत्र को बनाए रखना, हरित भारत, टिकाऊ कृषि, मानव स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन के लिए रणनीतिक ज्ञान के विशिष्ट क्षेत्रों में मिशन शामिल हैं। इन सभी मिशनों को उनके संबंधित नोडल मंत्रालयों/विभागों द्वारा संस्थागत रूप दिया गया है और उन्हें कार्यान्वित किया गया है। इसके अलावा, चौंतीस राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) ने जलवायु परिवर्तन से संबंधित राज्य-विशिष्ट मुद्दों को ध्यान में रखते हुए एनएपीसीसी के अनुरूप जलवायु परिवर्तन पर अपनी राज्य कार्य योजनाएं (एसएपीसीसी) तैयार की हैं। एसएपीसीसी के कार्यान्वयन की जिम्मेदारी संबंधित राज्यों पर है।
जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय अनुकूलन कोष के तहत, 27 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में 847.48 करोड़ रुपये की परियोजनाएं स्वीकृत की गई हैं। दिसंबर 2023 में यूएनएफसीसीसी को प्रस्तुत भारत के प्रारंभिक अनुकूलन संवाद से पता चलता है कि वर्ष 2021-22 के लिए कुल अनुकूलन प्रासंगिक व्यय सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 5.6 प्रतिशत था। यह 2015-16 में 3.7 प्रतिशत की हिस्सेदारी से बढ़ रहा है। इससे पता चलता है कि सरकार जलवायु लचीलापन और अनुकूलन को विकास योजनाओं से जोड़ने के लिए लगातार प्रयास कर रही है और संसाधनों के लिए विशेष रूप से सामाजिक क्षेत्र से प्रतिस्पर्धी मांगों के बावजूद अनुकूलन के लिए संसाधनों की एक महत्वपूर्ण राशि खर्च कर रही है।
यह जानकारी पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री श्री कीर्ति वर्धन सिंह ने आज राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में दी।